भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के हीरो शहीद-ए-आज़म भगत सिंह (Shaheed Bhagat Singh) का जीवन परिचय (Biography), जन्म (Birth), परिवार (Family), शिक्षा (Education), शहीद दिवस (Shaheed Diwas), मृत्यु का कारण (Death Reason)
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को नयी धार देने वाले और भारतीय युवाओं में देश भक्ति की एक नयी अलख जगाने वाले भगत सिंह (Shaheed Bhagat Singh) एक बहुत बड़े क्रन्तिकारी थे। हालाँकि इनके पिता और चाचा भी एक स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाले क्रन्तिकारी थे। स्वतंत्रता सेनानियों में शहीद भगत सिंह का बहुत ही अहम् स्थान है इन्होने 23 वर्ष की युवावस्था में देश की आज़ादी और देश के युवाओं में देश भक्ति की अलख जगाने और जूनून पैदा करने के लिए हँसते हँसते मृत्यु को गले लगा लिया था। शहीद भगत सिंह (shaheed Bhagat Singh) का बलिदान व्यर्थ नहीं गया और इनको फांसी दिए जाने के बाद भारत के युवाओं में देश की आज़ादी के लिए जो जूनून पैदा हुआ उसी का नतीजा कुछ समय बाद भारत को आज़ादी के रूप में प्राप्त हुआ।
शहीद भगत सिंह – Shaheed Bhagat Singh
शहीद भगत सिंह ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेते हुए अपने देश और मातृ भूमि के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे। इनके पिता सरदार किशन सिंह और चाचा अजित सिंह भी सक्रिय क्रन्तिकारी स्वतंत्रता सेनानी थे जिनसे प्रभावित होकर भगत सिंह भी स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ गए और देश के स्वतंत्रतता संग्राम को एक नयी धार दी। आज भी देश के युवा भगत सिंह के व्यक्तित्व से बहुत अधिक प्रभावित हैं। आज़ादी की लड़ाई में इनके योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने इन्हे शहीद-ए-आज़म की उपाधि दी है। भगत सिंह ने देश के युवाओं के मन में भक्ति और आज़ादी की जो चिंगारी पैदा की वो एक ज्वालामुखी का रूप लेकर भारत के युवाओं के मन में धधक उठी और अंग्रेजों के अत्याचारों के खिलाफ भारत के युवा उठ खड़े हुए।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा – Early Life and Education
सरदार भगत सिंह का जन्म पंजाब में हुआ था। हालाँकि इनके पूर्वज लाहौर मूल निवासी थे। इनके एक पूर्वज लाहौर से पंजाब के खटकड़ गांव आ गए थे और यहीं पर बस गए थे।
जन्म और बचपन -Bhagat Singh Birthday and childhood
भगत सिंह का जन्म 27 सितम्बर सन 1907 को पंजाब के ल्यालपुर जिले के बंगा गांव में हुआ था। इनके जन्म के समय इनका गांव ब्रिटिश राज के समय भारत में ही था परन्तु भारत पाकिस्तान बंटवारे के बाद यह क्षेत्र पाकिस्तान में चला गया। अब यह गांव पाकिस्तान के फैसलाबाद जिले के अंतर्गत आता है। शहीद भगत सिंह का जन्म एक सिक्ख परिवार में हुआ। इनके पिता सरदार किशन सिंह और माता विद्यावती देवी थी। जन्म के समय इनके पिता सरदार किशन सिंह हुए चाचा अजित सिंह जी अंग्रेजी हुकूमत की खिलाफत करने के कारण जेल में थे।
पंजाब के नवां शहर का खटकड कलां गांव भी भगत सिंह से जुड़ा हुआ है। भगत सिंह अपने दादा सरदार अर्जन सिंह जी के साथ कई बार यहाँ आये थे। भारत पाकिस्तान बंटवारे के बाद भगत सिंह जी का परिवार खटकड़ कलां गाँव में ही आकर बस गया। तब से खटकड़ कलां गाँव भगत सिंह जी के गाँव के रूप में जाना जाने लगा।
परिवार और पारिवारिक पृष्ठभूमि – Family Background
शहीद भगत सिंह जी का जन्म पंजाब के एक सिक्ख परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह सन्धू और माता का नाम विद्यावती था। भगत सिंह अपने माता पिता की 9 संतानों – 6 पुत्र और 3 पुत्रियों में दूसरे नंबर के थे। इनके पिता और चाचा स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े हुए थे। इनके भाई रणवीर सिंह और बाकी छोटे भाई कुलतार सिंह , राजिंदरसिंह, कुलबीर सिंह, जगत सिंह, और बहनें प्रकाश कौर, अमर कौर, शकुंतला कौर थे।
भगत सिंह की शिक्षा – Education Of Bhagat Singh
भगत सिंह की प्रारंभिक शिक्षा गाँव के ही एक स्कूल में हुई। पांचवी कक्षा तक भगत सिंह जी गाँव के ही स्कूल में गए। उसके बाद उनके पिता जी ने उनका दाखिला आर्य समाज द्वारा संचालित दयानन्द एंग्लो-वैदिक स्कूल लाहौर में करवा दिया। स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद भगत सिंह ने स्नातक की शिक्षा के लिए नेशनल कॉलेज, लाहौर में दाखिला ले लिया और अपनी स्नातक की पढाई शुरू की। भगत सिंह पढाई में बहुत तेज थे। बहुत छोटी सी उम्र में ही इन्होने अपनी कक्षा से भी बड़े विषयों की लगभग 50 किताबें पढ़ डाली थी। जिनमे कई विदेशी किताबें भी इन्होने पढ़ी जिनसे ये बहुत प्रभावित भी हुए।
नेशनल कॉलेज लाहौर – National College Lahore
नेशनल कॉलेज की स्थापना भगत सिंह के 1923 में दाखिला लेने से 2 वर्ष पहले ही लाला लाजपत राय द्वारा की गयी थी। महात्मा गाँधी द्वारा शुरू किये गए असहयोग आंदोलन से लाला लाजपत राय बहुत प्रभावित हुए थे। असहयोग आंदोलन में गाँधी जी ने अंग्रेजी सरकार के खिलाफ असहयोग अर्थात अंग्रेजो की सभी सामान और वस्तु और सेवाओं के बहिष्कार की अपील पूरे देश से की और लोग इस असहयोग आंदोलन से जुड़ते चले गए। इसी कड़ी में लाला लाजपत राय ने अंग्रेजी शासन द्वारा संचालित स्कूल और कॉलेज के बहिष्कार के तहत लाहौर में नेशनल कॉलेज की स्थापना की थी।
प्रारंभिक राजनितिक झुकाव – Early Political Leanings
भगत सिंह बचपन से ही एक अलग विचार धारा से प्रभावित थे। उनके पिता सरदार किशन सिंह संधू और चाचा अजित सिंह दोनों ही सक्रीय स्वतंत्रता सेनानी थे और स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के एवज़ में उन दोनों को जेल भी जाना पड़ा था। अपने पिता और चाचा द्वारा अपने वतन की आज़ादी के लिए निभाई जा रही इस भूमिका का असर भगत सिंह पर बचपन से असर डाला था। अंग्रेजों के देश में बढ़ते अत्याचारों की कहानियां भी भगत सिंह बचपन से ही सुनते आ रहे थे जिसका उनके मन पर गहरा असर हुआ। ऐसे और भी बहुत सारे कारन रहे जिन्होंने उस समय भगत सिंह के मन पर बहुत गहरा प्रभाव छोड़ा। भगत सिंह के मन को प्रभावित करने वाले कारणों के बारे में कुछ विस्तार से जानते हैं –
जलियां वाला बाग – Jaliyan Wala Bagh
13 अप्रैल 1919 को अमृतसर, पंजाब में हुए जलियां वाला बाग हत्याकांड से भगत सिंह बहुत आहत हुए। इस हत्याकांड ने उनके दिमाग पर बहुत गहरा असर डाला। केवल 12 वर्ष की उम्र का एक बच्चा जालियां वाला बाग के बारे में सुनकर बहुत व्यथित हुआ और अपने पिता के साथ उस जगह को देखने के लिए गए और वहां की मिटटी जिसमे खून मिला हुआ था, उस मिटटी को एक शीशी में भरकर ले आये। घर पर वापस आने के बाद भगत सिंह उस मिटटी भरी हुई शीशी को हमेशा अपने पास रखते थे और अधिकतर उस शीशी को ही देखते रहते थे। उनको इस तरह देखते हुए एक बार उनकी बहन ने उनसे उस शीशी के बारे में पूछा तो भगत सिंह ने अपनी बहन से कहा कि इस मिटटी में मेरे देश के निर्दोष लोगों के खून मिला हुआ है। मैं अंग्रेजों से इसका बदला जरूर लूंगा, अंग्रेजों को मैं मार दूंगा।
असहयोग आंदोलन – Asahyog Andolan
अंग्रेजों के खिलाफ महात्मा गाँधी द्वारा शुरू किये गए असहयोग आंदोलन का भी भगत सिंह जी पर गहरा असर हुआ और इससे प्रभावित होकर वो भी सक्रिय रूप से स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ गए। असहयोग आंदोलन पूरे देश में बहुत लोकप्रिय हुआ और अंग्रेज भी इससे बहुत परेशान हुए। असहयोग आंदोलन में गाँधी जी ने देश के लोगो से अंग्रेजो की बनायीं सभी चीजों का त्याग करने की अपील की। जिससे देश में अंग्रेजों को आर्थिक रूप से तोड़कर उनको भारत पर शासन करने और यहाँ पर अपना प्रशासन चलाने में विफल किया जाये। असहयोग आंदोलन देश में बहुत हद तक कामयाबी भी पायी थी, परन्तु तभी उत्तर प्रदेश के चौरी चौरा कांड हो गया जिसकी वजह से गाँधी जी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया, इससे भगत सिंह बहुत दुखी हुए।
चौरी चौरा कांड – Chauri Chaura Kand
गाँधी जी ने अहिंसा के रास्ते पर चलते हुए, अहिंसा से देश को आज़ादी दिलाने के लिए उन्होंने असहयोग आंदोलन का रास्ता चुना और देश में अंग्रेजों से जुडी सभी वस्तुओं का परित्याग करना शुरू कर दिया। उसी कड़ी में उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में एक क़स्बा चौरी चौरा, जहाँ पर बाजार में विदेशी कपडे और विदेशी शराब की बिक्री हो रही थी। ये सभी विदेशी सामानों की दुकानें वहां के एक जमींदार द्वारा चलायी जा रही थी। यह जमींदार अंग्रेजों से बहुत प्रभावित था, बहुत सारे लोग इकट्ठे होकर असहयोग आंदोलन के समर्थन में इस बाजार में आकर सभी विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने के लिए प्रदर्शन करने लगे और नारे लगाने लगे। जमींदार को जब इस सबका पता चला तो वो लोगों को वहां से हटाने के लिए तुरंत पुलिस थाने में पहुँच गया और क्योंकि वो अंग्रेजों से प्रभावित था तो अंग्रेज प्रशासन भी उसकी मदद करता था। थाना भी वहीँ बाजार में ही था। ज़मींदार ने थानेदार गुप्तेश्वर सिंह से कहा साहब ये सब रोकिये और लोगो को यहाँ से हटाइये नहीं तो मेरा धंधा बर्बाद हो जायेगा, यह सुनकर दरोगा गुप्तेश्वर सिंह तुरंत थाने से बाहर आकर वहां इकठ्ठा हुए लोगों को वहां से हट जाने के लिए बोलने लगा, उसने हवा में फायर करते हुए बोला कि बंद करो ये आंदोलन।
पब्लिक का दरोगा को जवाब – Publics Reply To Police
वहां इकठ्ठा हुए लोगों ने दरोगा से कहा कि दरोगा जी हम यहाँ किसी को कुछ नहीं कह रहे हैं, हम सिर्फ शांति पूर्वक आंदोलन कर रहे हैं, हम तो सिर्फ इतना कह रहे हैं कि हम ये अंग्रेजों के बनाये कपडे और शराब आदि नहीं खरीदेंगे,
थानेदार का भीड़ पर फायर – Police Fired On Public
जब थानेदार के कहने पर भी प्रदर्शनकारी नहीं माने तो थानेदार ने लोगों पर गोली चला दी जिससे दो लोगों की वहीँ मृत्यु हो गयी। इससे 4000 से भी अधिक लोगों की भीड़ में इससे गुस्सा बढ़ने लगा और थानेदार ने और कई राउंड हवाई फायर की लेकिन लोग फिर भी नहीं हटे तो थानेदार ने 2 – 3 और लोगों पर फायर कर दिया, चूँकि पुलिस वाले भी इतनी अधिक तैयारी से नहीं आये थे तो इनकी गोलियां अब ख़त्म हो चुकी थी, ऐसा देख भीड़ ने इनको मरना शुरू कर दिया और ये अपनी जान बचने के लिए थाने के अंदर की तरफ भागे और पब्लिक भी इनके पीछे भाग पड़ी और थाने पर पहुंचकर पब्लिक ने थाने में आग लगा दी जिसकी वजह से 18 से 20 पुलिस वाले जिन्दा जलाकर मर गए। जब यह घटना गाँधी जी को पता चली तो वो इस सबसे बहुत व्यथित हुए और उन्होंने इस हिंसा को देखते हुए असहयोग आंदोलन को वापस लेने का फैसला किया।
भगत सिंह का व्यथित होना – Bhagat Singh Got Disappointed
असहयोग आंदोलन के तहत चौरी चौरा में हुई हिंसा की वजह से गाँधी जी ने व्यथित होते हुए, असहयोग आंदोलन को वापस लेने का निर्णय किया और असहयोग आंदोलन को वापस लेने की घोषणा कर दी। गाँधी जी की इस घोषणा का भगत सिंह पर भी बहुत गहरा असर हुआ, इससे भगत सिंह बहुत व्यथित हुए। इस वजह से देश में आज़ादी की लड़ाई में भाग लेने वाले लोग 2 गुटों में बँट गए – एक नरम दल और एक गर्म दल। भगत सिंह ने गर्म दल का रास्ता चुना
शहीद भगत सिंह की क्रांतिकारी गतिविधियाँ – Revolutionary Activities Of Shaheed Bhagat Singh
लाहौर के नेशनल कॉलेज में स्नातक की पढाई करते हुए भगत सिंह लाला लाजपत राय के संपर्क में आये साथ ही कुछ और स्वतंत्रता सेनानियों के संपर्क में आये। जिन स्वतंत्रता सेनानियों के संपर्क में शहीद भगत सिंह यहाँ आये उनमे सुखदेव थापर और भगवती चरण मुख्य लोग थे। अब धीरे धीरे भगत सिंह पूरी तरह से देश की आज़ादी की लड़ाई में कूद चुके थे।
नौजवान भारत सभा की स्थापना – Establishment Of Naujawan Bharat Sabha
1926 में भगत सिंह ने नौजवान भारत सभा की स्थापना की और नौजवानों से देश की आज़ादी के लिए नौजवान भारत सभा से जुड़ने की अपील की। भगत सिंह एक बहुत अच्छे लेखक भी थे।
एक अच्छे लेखक के रूप में – As A Good Writer
शहीद भगत सिंह (Shaheed Bhagat Singh) एक मेधावी छात्र तो थे ही साथ ही वो एक बहुत अच्छे लेखक भी थे। अपने कॉलेज के दिनों में भगत सिंह ने एक निबंध लेखन प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और उन्होंने “भारत में स्वतंत्रता संग्राम के कारण पंजाब में समस्याएं” (“The Problems in Punjab Due To Freedom Struggle in India”) विषय पर निबंध लिखा और प्रथम इनाम जीता।
कुछ समय बाद इन्होने कीर्ति किसान पार्टी की पत्रिका कीर्ति भी लिखना शुरू कर दिया। उन्होंने पंजाबी और उर्दू अख़बारों के लिए भी लेख लिखने शुरू कर दिए थे। “इंकलाब ज़िंदाबाद” के नारे को प्रसिद्द करने का श्रेय भी भगत सिंह को ही जाता है। कीर्ति पत्रिका में लिखे जाने वाले लेख के जरिये भगत सिंह देश के नौजवानों को अपने सन्देश भेजा करते थे।
शहीद भगत सिंह की क्रन्तिकारी गतिविधियां – Revolutionary Activities Of Bhagat Singh
कॉलेज के दिनों में ही भगत सिंह क्रन्तिकारी गतिविधियों में सम्मिलित हो गए थे। धीरे – धीरे उनकी लोकप्रियता भारतीय नौजवानों के बीच बढ़ती ही जा रही थी। उनकी बढ़ती हुई लोकप्रियता को देखते हुए अंग्रेज प्रशासन ने मई 1927 में इनको लाहौर में अक्टूबर 1926 में हुए एक बम ब्लास्ट के आरोप में अरेस्ट कर लिया। उनकी रिहाई के लिए काफी कोशिशे की गयीं। लेकिन अंग्रेज प्रशासन इनको रिहा नहीं करना चाहता था। प्रशासन ने इनको जमानत देने के लिए 60,000 (साठ हजार) रूपये की जमानत की शर्त रखी। गिरफ़्तारी के 5 हफ़्तों बाद भगत सिंह को 60,000 रूपये की जमानत देकर छुड़ा लिया गया।
जेल से जमानत पर छूटने के बाद भगत सिंह ने कीर्ति पत्रिका और पंजाबी और उर्दू के कुछ अख़बारों के लिए लेखन का कार्य शुरू कर दिया।
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हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन से जुड़े – Joined Hindustan Republic Association
1928 में शहीद भगत सिंह (Shaheed Bhagat Singh) हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन से जुड़ गए। हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन की स्थापना चंद्रशेखर आज़ाद ने की थी। यहाँ भगत सिंह की मुलाकात चंद्रशेखर आज़ाद के साथ ही राम प्रसाद बिस्मिल, सुखदेव, भगवती चरण वोहरा, शिवराम राजगुरु,और अशफ़ाक़ुल्लाह खान जैसे क्रांतिकारियों से हुई और ये सब मिलकर अपने देश की आज़ादी के लिए क्रन्तिकारी गतिविधियों को पूरा करने लगे। हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन का नाम 1928 में बदलकर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन (Hindustan Socialist Republic Association – HSRA)कर दिया गया।
साइमन कमीशन और लाला लाजपत राय की मृत्यु – Simon Commission And Lala Lajpat Rays Death
1928 में इंग्लैंड सरकार ने एक कमीशन बनाकर भारत भेजा इस कमीशन का नाम साइमन कमीशन था। यह कमीशन भारत में राजनितिक स्थिति का आंकलन करने के लिए भारत भेजा गया था। क्योंकि भारत की राजनितिक स्थिति का आंकलन करने के लिए इस कमीशन में भारत से कोई भी मेंबर नहीं लिया गया था इसलिए भारतीय लोग इस कमीशन का विरोध कर रहे थे। यह कमीशन भारत में जिस जगह भी जाता वहीँ उसका विरोध होता।
30 अक्टूबर 1928 को साइमन कमीशन लाहौर पहुंचा और इसके विरोध में लाला लाजपत राय ने एक विरोध मार्च निकला और इसमें काफी भीड़ जुडी।
लाहौर स्टेशन पर बहुत भरी भीड़ इकट्ठी हो गयी और भीड़ नारेबाजी कर रही थी। पुलिस ने भीड़ को तितर बितर करने की कोशिश की जिसके परिणाम स्वरुप वहां हिंसा शुरू हो गयी।
लाला लाजपत राय की मृत्यु – Death Of Lala Lajpat Ray
यह सब देखकर लाहौर के पुलिस सुपरिंटेंडेंट जेम्स ए. स्कॉट ने लाठीचार्ज का आदेश दे दिया। लाठीचार्ज शुरू होने पर अधिकतर भीड़ वहां से तितर बितर कर दिया परन्तु कुछ लोग वहीँ विरोध में डटे रहे जिनमे लाला लाजपत राय भी शामिल थे। इस लाठीचार्ज के परिणामस्वरूप लाला लाजपत राय को बहुत सी चोटें आयी और उनको अस्पताल में भर्ती करना पड़ा। 17 नवंबर सन 1928 को ह्रदय गति रुकने के कारण लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गयी। लाला लाजपत राय की मृत्यु के कारण सभी क्रांतिकारियों को बहुत रोष हुआ और उन्होंने इस घटना को लाला लाजपत राय हत्या के तौर पर देखा और क्रांतिकारियों ने इसका बदला लेने का प्रण लिया।
सॉन्डर्स की हत्या – Murder Of Saunders
लाला लाजपत राय की हत्या के लिए हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन के क्रांतिकारियों ने लाहौर के पुलिस सुपरिटेंडेंट जेम्स ए. स्कॉट को जिम्मेदार माना क्योंकि उसी ने लाठीचार्ज का आदेश दिया था। भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, राजगुरु और जयगोपाल ने स्कॉट को मारकर बदला लेने की योजना बनायी। चारों ने मिलकर जेम्स स्कॉट को गोली मारने की तयारी कर ली और लाहौर में कोतवाली के बाहर जेम्स स्कॉट के बाहर निकलने का इंतजार करने लगे। लेकिन गलती से जेम्स स्कॉट की जगह डिप्टी सुपरिंटेंडेंट जॉन पी. सॉन्डर्स मोटर साइकिल पर बाहर आ गया और राजगुरु ने उसको गोली मार दी। गोली लगने के बाद सौंडर्स नीचे गिर पड़ा और फिर भगत वापस आये और उसके सर में 3 गोलियां और मार दी जिससे उसकी मौके पर ही मृत्यु हो गयी। इतने में एक ब्रिटिश पुलिस का एक हिंदुस्तानी हेड कांस्टेबल चानन सिंह उनका पीछा करते हुए उनको पकड़ने के लिए पीछे भागा हालाँकि चंद्र शेखर आज़ाद ने इसको समझाया भी परन्तु ये नहीं माना तो चंद्रशेखर आज़ाद ने इसको भी गोली मर दी और सभी लोग वहां से D. A. V कॉलेज होते हुए भाग निकले और सुरक्षित स्थानों में जाकर छुप गए।
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लाहौर से बचकर निकलना – Escaped From Lahore
२ पुलिस अधिकारीयों की हत्या से पूरा ब्रिटिश प्रशासन हिल गया और क्रांतिकारियों की धरपकड़ के लिए पूरी नाके बंदी कर दी गयी। लाहौर से बाहर निकलने के लिए भगत सिंह ने पूरी तरह से अपना रूप बदल लिया अपनी दाढ़ी मूंछ काट दी और कोट पेंट्स के साथ ही एक बहुत बढ़िया सी हैट भी जिससे ये बिल्कुकल भी पहचान में नहीं आ पा रहे थे। HSRA के एक और सक्रिय सदस्य भगवती चरण वोहरा की पत्नी दुर्गा देवी जिनको दुर्गा भाभी के नाम से क्रन्तिकारी पुकारते थे उनसे भगत सिंह को सुरक्षित निकलने के लिए मदद मांगी। दुर्गा भाभी मदद के लिए तैयार हो गयी। भगत सिंह और बाकि क्रांतिकारियों का हुलिया सभी जगह भिजवा दिया गया था जिससे ये जहाँ भीं दिखें पकड़ लिए जाएँ। इसलिए भगत सिंह अपना रूप पूरी तरह बदलकर दुर्गा भाभी को अपनी पत्नी बनाकर और उनके बच्चे को गोद में लेकर सुखदेव को अपने नौकर के रूप में लेकर रेलवे स्टेशन पर पहुँच गए। बदले हुए रूप में अंग्रेज इनको पहचान नहीं पाए और यहाँ से बठिंडा के रास्ते होते हुए कलकत्ता पहुंच गए।
दिल्ली विधान सभा में बम ब्लास्ट – Bomb Blast In Delhi Legislative Assembly
ब्रिटिश सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों की वजह से मजदूरों पर बढ़ते अत्याचार को देखते हुए इन्होने मजदूरों के समर्थन में प्रदर्शन शुरू कर दिया। मजदूरों पर होने वाले अत्याचारों से ये बहुत आहात थे और बराबर उनके लिए आवाज़ उठा रहे थे परन्तु अंग्रेज सुन नहीं रहे थे। क्योंकि भगत सिंह को किताबें पढ़ने का बहुत शौक था और इसी शौक की कड़ी में ये फ्रेंच रेवोलुशन के बारे में पढ़ रहे थे जिसमे इन्होने पढ़ा कि 1893 मे फ्रेन्च असेंबली में भी लौ इंटेंसिटी का एक बम फोड़ा गया था और इसी से प्रभावित होकर इन्होने भी दिल्ली असेंबली में बम फेंकने की रणनीति बनायीं। इन्होने कहा की अंग्रेज सरकार बेहरी हो गयी है, इन्हे नींद से जगाने के लिए धमाका करना जरुरी है। बटुकेश्वर दत्त को साथ लेकर असेंबली में बम फेंकने की तयारी की और योजना बनायीं।
bomb फेंकर ये किसीको कोई नुकसान नहीं पहुँचाना चाहते थे केवल डराना चाहते थे। इसलिए लौ इंटेंसिटी तैयार किया गया था और साथ ही कुछ पर्चे लिखे गए और इन सभी पर्चों पर लिखा था बहरों को सुनाने के लिए धमाका जरुरी है।
08 अप्रैल 1929 को बटुकेश्वर दत्त के मिलकर भगत सिंह ने सेंट्रल असेंबली में 2 बम फेंक दिए और साथ ही लिखे गए पोस्टर भी फेंक दिए। और वहीँ पर खड़े होकर इंक़लाब ज़िंदाबाद के नारे लगाने लगे। बम फेंकने के बाद असेंबली में बहुत सारा धुआं फ़ैल गया था भगत सिंह चाहते तो वहां से आराम से निकल सकते थे, परन्तु निकले नहीं और वहीँ खड़े रहे, ये स्वयं चाहते थे की ब्रिटिश सरकार इनको गिरफ्तार कर ले।
भगत सिंह के खिलाफ कोर्ट केस – Court Case Against bhagat Singh
कांड में भगत सिंह गिरफ्तार हो गए थे और उन पर केस शुरू कर दिया। इस केस का निपटारा करते हुए असेंबली में बम फेंकने के आरोप में इनको फांसी की गयी।
वहीँ अंग्रेजी सरकार के खिलाफ अपनी लड़ाई को और अधिक धार देने के लिए HSRA ने लाहौर और सहारनपुर में अपनी बम फैक्ट्री स्थापित की। लेकिन जल्दी ही पुलिस द्वारा इस बम फैक्ट्री को ढूंढ लिया गया और भगत सिंह के सहयोगी जय गोपाल, सुखदेव, और किशोरी लाल को गिरफ्तार कर लिया गया। कुछ ही समय बाद सहारनपुर की फैक्ट्री भी पकड़ी गयी। कुछ और भी क्रांतिकारी इन फैक्ट्रीयों से गिरफ्तार किये गए थे। बम फैक्ट्री से गिरफ्तार किये गए कुछ लोग पुलिस के टार्चर से टूट गए और वो पुलिस के गवाह बन गए। उन्होंने सॉन्डर्स और चानन सिंह की हत्या के राज भी उगल दिए। अब पुलिस के पास सॉन्डर्स और चानन सिंह की हत्या में शामिल लोगों की पूरी जानकारी थी और पर्याप्त सुबूत भी उनके पास थे।
इसलिए लाहौर में सॉन्डर्स और चानन सिंह की हत्या केस भी भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव के साथ ही 21 और क्रांतिकारियों के खिलाफ शुरू कर दिया गया। भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को दिल्ली की जेल से लाहौर जेल में शिफ्ट कर दिया गया जहाँ उनपर सॉन्डर्स और चानन सिंह हत्या केस की सुनवाई शुरू हुई।
जेल में भूख हड़ताल – Hunger Strike in Jail
लाहौर जेल में जाने पर भगत सिंह ने देखा कि दिल्ली जेल के मुक़ाबले लाहौर जेल में खाने की गुणवत्ता बहुत ही ख़राब थी। यहाँ पर कैदियों को पूरा खाना भी नहीं दिया जाता था उसके साथ ही यहाँ पर कैदियों को कपडे भी फाटे हुए दिए जाते थे। भगत सिंह ने देखा की जेल में भारतीय कैदियों के साथ बहुत भेदभाव पूर्ण व्यव्हार किया जाता था। इस सबके खिलाफ उन्होंने जेल में ही भूख हड़ताल शुरू कर दी और इसमें उनका साथ एक साथी कैदी जतिन दास ने दिया। शुरू में ब्रिटिश प्रशासन ने सोचा कि 4-5 दिनों में यह भूख हड़ताल स्वयं ही समाप्त हो जाएगी परन्तु उनकी उम्मीदों के खिलाफ यह भूख हड़ताल बहुत लम्बी चली और 64 दिनों तक भूख हड़ताल पर रहते हुए जतिन दस की मृत्यु हो गयी परन्तु भगत सिंह अभी भी भूख हड़ताल को जारी रखे हुए थे और ब्रिटिश शासन की नाक में दम करके रख दिया। 116 दिनों की भूख हड़ताल के बाद अपने पिता की अपील पर भगत सिंह ने अपनी भूख हड़ताल को ख़त्म कर दिया।
भगत सिंह को फांसी की सजा – Death Sentence Of Shaheed Bhagat Singh
लाहौर में सॉन्डर्स और चानन सिंह हत्या केस में बहुत सी सुनवाइयां होने के बाद भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सजा सुनाई गयी। 24 मार्च 1931 इन तीनो क्रांतिकारियों की फांसी की तारिख तय की गयी। इस समय तक भगत सिंह देश में बहुत ज्यादा प्रसिद्द हो चुके थे और देश की आम जनता और खासकर देश का युवा वर्ग भगत की फांसी की सजा की खबर सुनकर बहुत आक्रोशित हुए और जैसे जैसे इनकी फांसी की तारिख नजदीक आती गयी देश में एक रोष उत्पन्न हो गया और जनता ने इकठ्ठा होकर भगत सिंह की फांसी के खिलाफ आंदोलन शुरू करने की योजना बनायीं और फांसी के दिन लोगों को इकठ्ठा होकर जेल पर आने के लिए बोलै गया। इस योजना की खबर ब्रिटिश प्रशासन को लगी तो उनके हाथ पैर फूल गए और उन्होंने आनन् फानन में फांसी के लिए तय की गयी तारीख से एक दिन पहले यानि 23 मार्च 1931 को शाम 7:30 बजे भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी गयी।
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Sources – Click here
FAQ – shaheed bhagat singh Biography, Birth, Education l शहीद भगत सिंह जीवन परिचय, जन्म, शिक्षा
Q – भगत सिंह का जन्म कहाँ हुआ था?
Ans – भगत सिंह का जन्म 27 सितम्बर सन 1907 को पंजाब के ल्यालपुर जिले के बंगा गांव में हुआ था। इनके जन्म के समय इनका गांव ब्रिटिश राज के समय भारत में ही था परन्तु भारत पाकिस्तान बंटवारे के बाद यह क्षेत्र पाकिस्तान में चला गया। अब यह गांव पाकिस्तान के फैसलाबाद जिले के अंतर्गत आता है।
Q – भगत सिंह की प्रारंभिक शिक्षा कहाँ पर हुई थी?
Ans – शहीद भगत सिंह जी की प्रारंभिक शिक्षा (कक्षा 5 तक) गांव के ही एक स्कूल मे पूरी हुई।
Q – हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन (HSRA) की स्थापना किसनेकी थी?
Ans -हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन की स्थापना महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आज़ाद ने की थी
Q – भगत सिंह जी को फांसी कब लगायी गयी?
Ans – 23 मार्च सन 1931 को भगत सिंह जी को लाहौर जेल में फांसी लगायी गयी।